लॉकडाउन का एक माह पूरा-बहुराष्ट्रीय त्रासदी में खड़ा भारत
लहुराष्ट्रीय त्रासदी कोरोना के कारण आज देश में लॉकडाउन का एक माह हो गया। सब कुछ ठप्प रहा पर भारत चलता रहा। इस एक माह के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सक्रियता से भारत का नेतृत्व किया और संदेश दिया कि उनमें विश्व का नेतृत्व करने की ताकत है। नेतृत्व की इस क्षमता के पीछे राष्ट्र के रूप में भारत की लोकतांत्रिक ताकत है। 'भारत' संसदीय प्रणाली की सरकार वाला एक स्वतंत्र प्रभुसत्ता सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य है, और संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था है। __ संविधान के अनुच्छेद 74(1) में यह प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति की सहायता करने तथा उसे सलाह देने के लिए मंत्री परिषद होगी, जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा। 13 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा ने भारत को एक स्वतंत्र संप्रभु तंत्र घोषित करने और भावी शासन के लिए संविधान बनाने का संकल्प प्रकट किया कि 'संप्रभु स्वतंत्र भारत तथा उसके अंगभूत प्रदेशों और शासन के सभी अंगों की शक्ति और सत्ता जनता द्वारा प्राप्त होगी, जिसमें सभी लोगों । को राजकीय नियमों और साधारण सदाचार के अधीन सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्यायाधिकार, वैयक्तिक स्थिति व अवसर की तथा कानून के समक्ष समानता के अधिकार और विचारों की, विचारों को प्रकट करने की, विश्वास व धर्म की, ईश्वरोपासना की, काम-धंधे की, संघ बनाने व काम करने की स्वतंत्रता रहेगी और मानी जाएगी।' कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो भारत का सौभाग्य रहा है कि यहां संविधान के दायरे में सरकार की शक्ति और जनाधिकार में संतुलन रहा है, जो वैश्विक जगत को भी अचंभित करता है। भारतीय गणतंत्र की सफलता के मूल में जनता द्वारा अधिकार की आराधना से अधिक कर्त्तव्य की साधना रही। यह भारत की सनातन प्रकृति और संस्कृति रही है, जिसने चुनौतियों की विकृति को कभी हावी नहीं होने दिया। लॉकडाउन एक आपातकालीन प्रोटोकॉल है,
जो सरकार द्वारा संकट-आपात स्थिति में नागरिकों का आवागमन प्रतिबंधित करता है। विश्व इतिहास में लॉकडाउन जैसी स्थिति पहले विश्वयुद्ध में बनी, जो 28 जुलाई 1914 से 28 जून 1919 को वर्साय की सन्धि तक रहा। ब्रिटिश उपनिवेश होने के कारण भारत भी इसमें अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होने हेतु बाध्य था। विश्वयुद्ध में कई देशों ने लाखों की संख्या में जनबल खोया। भारत भी उसमें शामिल था। किंतु भारत पर इसके प्रभाव कई मायनों में सकारात्मक भी कहे जा सकते हैं, क्योंकि भारतीय सैनिकों के इस युद्ध में शामिल होने की शर्तों को ब्रिटिश सरकार द्वारा पूरा न करने से भारतीयों का उसके प्रति मोहभंग हो गया और बढ़ते असंतोष ने राष्ट्रवाद बढ़ाया, अंततः स्वतंत्रता की चेतना प्रस्फुटित हुई। द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरु आत 1 सितंबर 1939 को हुई और यह 2 सितंबर 1945 तक चला। इन 6 साल तक विश्व में लॉकडाउन जैसी स्थिति रही। अनुमान है कि विश्व में 5-7 करोड लोगों की जानें गईं। सैनिकों के साथ-साथ बडी संख्या में नागरिक भी काल के गाल में समा गए। द्वितीय विश्वयुद्ध ने ब्रिटिश सरकार से भारतीय स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया। तत्कालीन गवर्नर जनरल ने घोषणा की कि 'युद्ध के बाद ऐसी समिति नियुक्त की जाएगी जो पूर्णतः राष्ट्रीय होगी और भारत के भावी संविधान की रूपरेखा तैयार करेगी।' स्वतंत्र भारत में लॉकडाउन की स्थिति 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान बनीं। हमने देखा स्कूल, कॉलेज, सरकारी कार्यालयों में काम जरूर होते, लेकिन सरकारी निर्देशों के साथ नियंत्रण में। रात्रि को रोशनी जलाना प्रतिबंधित था। कपy जैसे हालात रहते। डर और दहशत का माहौल था। दोनों युद्धों में क्रमशः लालबहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत की विजय हुई। राष्ट्रीय संस्कृति के प्रति उदासीनता समाप्त हुई और राष्ट्रीयता का नवजागरण हुआ। सुप्त राष्ट्रीयता ने जागृत राष्ट्रीयता का रूप लिया। नव राष्ट्रवाद जागृति की इस धारा को तब और शक्ति मिली जब 1999 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में कारगिल युद्ध में विजय मिली। आज विश्व अदृश्य शत्रु कोरोना वायरस से युद्ध कर रहा है। भारत भी इस युद्ध को मजबूती से लड़ रहा है। कोरोना के विरुद्ध इस युद्ध के कारण आज जो लॉकडाउन की स्थिति है, राष्ट्र के रूप में भारत और भारतीय नागरिकों ने इसे चुनौती से अधिक अवसर के रूप में लिया है। चुनौती गंभीर है लेकिन नागरिक बोध, आत्मविश्वास और जागृति के नये युग की शुरुआत भी हुई है। आत्मविश्ववास बढ़ा है और आत्म-सम्मान जगा है। बहुराष्ट्रीय त्रासदी के दौरान नागरिक कर्तव्य परिभाषित हुए हैं। जनता और सरकार के बीच परस्पर विश्वास, अधिकार और कर्त्तव्यबोध परिभाषित हुआ है। सरकार क्या है, कैसी हो, किसके लिए हो, दायित्व क्या हों, सरकार की आवश्यकता क्यों? इन प्रश्नों को सार्थक उत्तर मिला। 'कोउ नृप होय हमें का हानी' इस दायित्वहीन जन बोध का ज्ञानशोधन हुआ। किताब के ज्ञान की अपेक्षा राष्ट्र की घटना से मिलने वाला ज्ञान गंगा की तरह अविरल प्रवाहमान है। लॉकडान के इस दौर में लोगों ने घर रहकर राष्ट्र की आराधना की है। सामूहिकता, पड़ोसी भाव, रिसते रिश्तों की मजबूती, अपनत्व, आत्मीयता, उदारता, सेवा-भाव को उचित स्थान मिला। कोई भूखा नहीं रहेगा' का भाव जगा है। सरकार के आग्रह और नागरिकों के कर्त्तव्य से संकट की इस घड़ी में नागरिक बोध का जागरण हुआ है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक ही जनभावना है 'मैं भी जीऊं, और सब जिएं। सहिष्णुता, सहानुभूति, संवेदनशीलता और सद्भाव का ऐसा अद्भुत दृश्य भारतीय समाज ने पूर्व में शायद ही देखा हो। जनप्रतिनिधि भी लॉकडान के दौरान अपने वास्तविक कर्तव्य निभा रहे हैं। जनप्रतिनिधियों से यही अपेक्षा रहती थी कि नाली, नाले-खरंजा और सड़क का निर्माण करवाया जाए। विकास के यही मायने थे। लेकिन आज साबित हो गया है कि जनप्रतिनिधि का पहला कर्त्तव्य है जान-माल की सुरक्षा। जनता और जनप्रतिनिधि दोनों इस आत्मबोध से युक्त हुए हैं। सभी वर्गों ने कोरोना महामारी से निपटने और लॉकडाउन की स्थिति से उबरने में अपना योगदान दिया। लॉकडाम के इस काल में पत्रकार, कलाकार, रचनाकार, शिक्षक, समाजसेवी सभी ने अपना योगदान दिया है। घर-घर से समाधान आया। बच्चों ने अपने घरों से जो संदेश दिया, पूरे राष्ट्र ने देखा। हम सब अपना- अपना राष्ट्रीय कर्तव्य निभा रहे हैं। मुंडन, उपनयन, विवाह या श्राद्ध कर्म हो, हम लोग सब फिलहाल स्थगित कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी अपने पूर्वाश्रम पिता के अंतिम दर्शन नहीं कर पाए। उन्होंने राष्ट्र को संदेश दिया कि पुत्रधर्म से बड़ा राष्ट्रधर्म है। यह प्रेरक त्याग है। पूरे देश में इस समय अलग-अलग विभागों के लगभग 1 करोड़ 25 लाख कोरोना योद्धा अगली पंक्ति में कार्यरत हैं। जिनमें डॉक्टर्स, अस्पताल कर्मी, पुलिस, सफाई कर्मी शामिल हैं। कोरोना योद्धाओं पर आक्रमण की कुछ अवांछित घटनाएं हुई हैं, लेकिन गृह मंत्रालय ने संज्ञान लेकर ऐसे मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत कड़ी कार्रवाई करने को कहा है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में सख्ती से कार्रवाई हुई है। सार्वजनिक हों या निजी उपक्रम, सभी ने अपने स्तर से योगदान दिया। भारतीय रेल ने दवा और खाद्यान्न को देश के कोनेकोने तक पहुंचाया, वहीं रेल डिब्बों को अस्पताल में परिविर्तत किया। विनिर्माण क्षेत्र में लगे उद्योगों ने मास्क, टैस्ट किट और पर्सनल प्रोटैक्शन इक्यूपमैंट का निर्माण किया। कोरोना महामारी तो बहुराष्ट्रीय त्रासदी है, लेकिन इस त्रासदी ने विशेषकर हम भारतीय कोअनेक सीख दी है। वसुधैव कुटुंबकम की उदार नीति ने भारत को विश्व में आज एक नई पहचान दी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर इस त्रासदी के बीच विश्व के 62 देशों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन सहित अनेक दवाओं की सप्लाई हो रही है। विश्व त्रासदी के इस काल में अपने देश का नेतृत्व करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्क देशों और जी-20 देशों (जिसमें विश्व के अग्रणी देश शामिल हैं) की अगुवाई की है। अमरीका, फ्रांस, जर्मनी, ब्राजील जैसे देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न केवल बधाई दी, अपितु भारत का शुक्रिया भी अदा किया। विश्व में कोरोना त्रासदी विकराल रूप ले चुकी है। कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या विश्व में बढ़कर 25 लाख से अधिक हो गई है, और इसने पौने दो लाख से अधिक लोगों की जान ले ली है। साथ ही, राहत भरी खबर है कि विश्वभर में अब तक कोरोना महामारी से 6.56 लाख लोग ठीक भी हुए हैं। अमरीका की स्थिति सबसे गंभीर है, जहां 8 लाख से अधिक लोग संक्रमित हैं, वहीं 45 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है। इटली, फ्रांस, मेन और जर्मनी में भी मरने वाले लोगों की संख्या हजारों में है और यह लगातार बढ़ रही है। जहां तक भारत का प्रश्न है, सब नियंत्रण में है। कोरोना संक्रमितों की संख्या अब तक लगभग 20 हजार है। जिसमें लगभग 4 हजार से अधिक लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 650 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है और 15 हजार संक्रमितों का अस्पतालों में उपचार चल रहा है। गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड राज्य पूरी तरह कोरोना मुक्त घोषित हो चुका है। 22 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश और 12 करोड़ आबादी वाले बिहार में कोरोना संक्रमितों की संख्या कम है। पूरे देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या की वृद्धि की गति में लगातार कमी आ रही है। भारत की यह सकारात्मक स्थिति नेतृत्व की अद्भुत शक्ति और नागरिक बोध की सजग कर्त्तव्यपरायणता का परिणाम है। ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आजादी की लडाई में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अगुवाई की और भारत को आजादी दिलाई। आज कोरोना के बहुराष्ट्रीय त्रासदी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के पारिवारिक मुखिया के रूप में जो भूमिका निभा रहे हैं उसके प्रति सामूहिक श्रद्धा का ज्वार उमड़ रहा है। भारत इस बहुराष्ट्रीय त्रासदी में न केवल विजय प्राप्त करेगा, अपित आने वाले समय में विश्व का नेतृत्व भी करेगा। विश्व के कोने-कोने से यह स्वर सुनाई दे रहा है। यह मैं नहीं कह रहा हूं, अमरीका की एक संस्था ने 1 जनवरी से 14 अप्रैल के बीच इस बात को लेकर एक सर्वे करवाया कि कोरोना महामारी की रोकथाम में विश्व का कौन सा नेतृत्वकर्ता सबसे आगे है? सर्वे में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार सबसे आगे रहे। साफ है, आज पूरा विश्व मान रहा है कि कोरोना से लड़ाई में वे दुनिया सबसे अधिक प्रभावी हैं। (लेखक भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व राज्यसभा सांसद है।)